पिछले रविवार को
हिन्द युग्म के शैलेश भाई से भेंट हुई. वे हिन्द युग्म की पुरस्कार योजना में पुरस्कृत कवियों को देने के लिये मेरे कविता संग्रह की प्रतियां लेने आये थे. ( यूं मज़ाक में इसे चिट्ठाकर मिलन भी कह सकते हैं). बात चीत हिन्द युग्म के प्रयासों को लेकर शुरू हुई. शैलेश भाई ने आगे की कुछ योजनाओं की भी बात की. मेरी राय में शैलेश में गज़ब का उत्साह भी है और अद्भुत जीवट भी. मेरा मानना है कि यदि इस तरह के प्रतिबद्ध लोग हिन्दी को मिलते रहें तो न केवल भाषा का बल्कि, अंतर्जाल पर भी हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है.
बातचीत के क्रम मे हिन्दी चिट्ठाकारों के बीच समय समय पर उठते विवादों , aggregators की भूमिका, नये एग्ग्रीगटर्स पर भी चर्चा हुई. विवादों पर मेरी राय थी कि इसमें दोनों ही पक्ष दोषी हैं . मैने शैलेश को बताया कि मेरी राय में चिट्ठाकारी कुछ कुछ डायरी लेखन की तरह ही है. बस फर्क़ ये है कि डायरी हम आम तौर पर दूसरों को दिखाने के लिये नही लिखते. ( क्या वाकई ?- यदि ऐसा होता तो डायरी लेखन में भी प्रतिष्ठित व्यक्ति झूठ की मिलावट नहीं करते. हालांकि यह अलग विवाद का विषय है). जब कि blogging is like leaving your personal diary for public exposure. जिस तरह डायरी में हम अपने निजी विचार व्यक्त करते है ,बिना किसी प्रतिबन्ध के, उसी प्रकार ब्लौग पर भी हम अप्ने विचार सार्वजनिक रूप से व्यक्त करते हैं.डायरी और चिट्ठे में पहला अंतर तो यह है कि यदि हम पाखंड का सहारा न लेकर ईमानदारी से अपनी मन की सोच को ब्लोग पर व्यक्त करते है, तो यह लगभग डायरी लेखन ही हुआ. दूसरा अंतर तात्कालिकता को लेकर है. डायरी लिखने के तुरंत बाद सार्वजनिक नही होती ( या की जाती), जबकि ब्लौग पर हम जो भी लिखते है, चाहते भी हैं कि यह तुरंत लोगों की नज़र में भी आ जाये ( यहीं पर एग्ग्रेगेटर्स् की भूमिका है) ऐसे ब्लौग्गर कम ही होंगे जो ब्लौग पर अपनी पोस्ट सिर्फ स्वांत: सुखाय ही लिखते हैं. ( शायद ऐसे ही ब्लौग्गर को किसी एग्ग्रीगटर पर पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती होगी).
शैलेश भाई को में अपनी बात समझा रहा था कि किसी ब्लौग्गर को किसी अन्य ब्लौग्गर की पोस्ट पर undully harsh टिप्पणी करने से बचना चाहिये. प्रतिक्रिया देना एक बात है, टांग खिंचाई ( व्यंग की भाषा मे, भी ठीक समझी जा सकती है), परंतु, अनावश्यक विवाद से बचना ही श्रेयस्कर है. कम से कम में तो ये ही मानता हूं.
मैं यह कदापि नहीं कह रहा कि हमें ब्लौग सिर्फ पढना चाहिये और टिप्पण से बचना चाहिये. ( नही, बल्कि मै तो यहां
सारथी जी से पूर्ण सहमत हूं कि अधिक से अधिक टिप्पणी देना भी ब्लोग्गिंग मुख्य उद्देश्य है.) अनावश्यक , सिर्फ विवाद पैदा करने की दृष्टि से की गयी वे टिप्पणियां जिनमें भाषा की मर्यादा रेखा भी लांघ दी जाती है, को में अनुचित मानता हूं.
हालांकि शैलेश भारतवासी के साथ हुई बातचीत में कुछ विशॆष विवादों तथा चिट्ठों का जिक्र भी आया था, परंतु वह यहां जान बूझकर नहीं दिया गया.
मैं बहुत अनुभवी चिट्ठाकर तो हूं नही, अत: बेहतर हो यदि कुछ अनुभवी व जानकार चिट्ठाकर इस पर प्रकाश डालें.
कम से कम में तो इसे अंन्यथा नहीं लूंगा.