Wednesday, October 24, 2007

काव्य सन्ध्या Kavya Sandhya

गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी इंटर्नेशनल मेनेजमेंट इंस्टीटुयूट ( IMI ) नई दिल्ली में छात्रॉं के प्रयास से एक कवि सम्मेलन आयोजित किया गया. क़वि सम्मेलन की रिकौर्डिंग का प्रथम भाग यहां प्रस्तुत है. प्रयोग के तौर पर मैने यह रिकौर्डिंग पहले अपने नये ब्लोग बृज गोकुलम पर डाली थी ( यहां मै आर सी मिश्र एवम संजय बैंगाणी का धन्यवाद भी ज्ञापित करना चाहूंगा ) .जब प्रयोग सफल लगा तब अपने इस ब्लोग पर प्रसारित करने की हिम्मत हुई. क़ुछ दिनों मे इस कवि सम्मेलन का दूसरा भाग भी उपलब्ध होगा.आनन्द लीजिये.
( इस भाग में आठ फाइल्स हैं, एक एक करके खोलते जाइये और काव्य सन्ध्या का लुत्फ उठाइये )
इस कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले कवि : सर्वश्री पंडित सुरेश नीरव ( संचालक ), अरविन्द पथिक, डा.अंजू जैन,अरविन्द चतुर्वेदी, प्रभाकिरण जैन,महेन्द्र शर्मा .







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Thursday, October 18, 2007

'एंटर एट योर ओन रिस्क'


उम्दा लकडी के केबिन में प्रवेश के लिये अपार्दर्शी शीशे का दरवाजा.दरवाजे के बीचोबीच लगी एक तख्ती ,जिस पर लिखी हुई रहस्यमयी सी इबारत- " enter at your own risk.Everything is going wrong today".( अर्थात अन्दर आना जोखिम भरा हो सकता है,आज सब कुछ गलत सलत हो रहा है ) देखने वाला एक बार तो चौंक ही जाय. अगर आपने यह तख्ती पढने के बाद भी केबिन में जाने की हिम्मत की तो दरवाजा खोलते ही सामने की दीवार पर एक और तख्ती "come on in, everything else has gone wrong". ( अन्दर आइये, बाकी सब कुछ गडबड है ).

जी हां, यह केबिन था डा. राजेन्द्र कुमार पचौरी का. हैदराबाद स्थित एड्मिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कौलेज औफ इंडिया ( ASCI) में डा. पचौरी senior faculty member थे .शायद 1980 तक. वही आर.के.पचौरी, जिनके नेट्रत्व में चलने वाले अंतरऋअष्ट्रीय संस्थान IPCC को इस वर्ष के नोबल पुरुस्कार के लिये चुना गया है.

1977 में मैं आई आई टी बम्बई में रिसर्च स्कौलर था. Hyderabad के Administrative Staff College of India जैसी प्रसिद्ध संस्था से Project Associate पद हेतु प्रस्ताव आया तो तुरंत तैयार हो गया. मई 1977 में जोइन किया. पहले ही दिन अपने कार्यालय से बाहर निकला तो बगल के केबिन पर निगाह गयी जहां वो तख्ती लगी हुई ठीक जिसका मैने शुरु में जिक्र किया .मैं प्रोजेक्ट एसोसिअट था, वह भी नया नया. हिम्मत नही हुई . बाद में मेरे अन्य सहयोगी भारत भूषण ( जो आगे चल कर Hindustan Times के सम्पादक पद पर भी पहुंचे) ने पचौरी साहब से परिचय कराया. मै Economics Area था, जबकि भारत भूषन Opeartions Management एरिया मे, जिसके प्रमुख थे डा. पचौरी.

फिर तो रोज़ का मिलना . शायद 1980 तक, जब तक डा. पचौरी वहां रहे. फिर अचानक पता लगा कि टाटा समूह ने एक कोष स्थापित करके दिल्ली में नया संस्थान खोला है " टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टिटयूट" ( जो बाद में TERI के नाम से मशहूर हुआ. बाद में शायद टाटा के हाथ खींच लेने के कारण ,TERI का नाम बदलकर The Energy Research Institute हो गया.

1977 से आजतक, डा. पचौरी की वेश भूषा, चाल ढाल में कोई परिवर्तन नहीं. अथक लगन. नितांत स्पष्ट ध्येय, लक्ष्य एकदम साफ. ऊर्जा सम्बन्धी लगभग सभी सरकारी फैसलों की पृष्ठभूमि में डा. पचौरी की सोच व लौबीयिंग. पर्यावरण से जुडे हर मुदे पर सबसे पहली राय डा. पचौरी की ही होती आयी है,पिछले तीस वर्षो में. मैने अपना पहला शोध पत्र " the substitution of energy and energy inputs in manufacturing industries" भी डा. पचौरी से प्रेरित होकर ही लिखा था 1978 में. हालांकि बाद में मैं commercial research की तरफ मुड गया और एक advertising agency में market research division में कार्य सम्हाल लिया.

डा. पचौरी ने अपनी लगन, मेहनत से विश्व एवं भारत मे नाम कमाया है. ईश्वर करें वह और सफलता अर्जित करते रहें तथा देश का नाम रोशन करें.

Tuesday, October 9, 2007

सौ करोड की रैली और कांशीराम्


कल 9 अक्टूबर बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि के अवसर पर बसपा की ओर से एक विशाल रैली लख्ननऊ में आयोजित होने जा रही है. बहन मायावति ने इसे 'सावधान रहो, आगे बढ़ो' रैली का नाम दिया है. इस रैली पर सौ करोड रु. खर्च होने का अनुमान है. ऐसा भी बताया गया है कि इस अवसर पर कांशीराम के नाम पर लगभग 4000 करोड रु. की परियोजनाओं की घोषणा की जायेगी.
समाज की बेहतरी के लिये प्रस्तावित सभी परियोजनाओं का स्वागत है. किंतु मायावती की मंशा कांशीराम को भीम राव अम्बेडकर के बराबर खडा करने की अधिक लगती है. सावधान रहो-पर किससे ? अब सरकार आपकी सोशल इंजीनीयरिंग के चलते आ गयी. जिससे आपको सबसे अधिक खतरा था- तिलक तराजू और तलवार-वे भी आपके साथ आ गये ( कब तक, ये अलग बात है).
आगे बढो- मतलब यूपी के आगे. हां ये सपना तो ठीक है. परंतु इसके लिये सौ करोड रु. का खर्च ?

यदि यही सौ करोड रु. रैली पर खर्च न करके उन परिवारों के लिये खर्च किये जाते जो, राजनीति से तो कही नहीं ज़ुडे -परंतु जिनके घर कब चूल्हा जलेगा कब नही-उन्हे भी पता नहीं. इस रैली के बलबूते मायावती जी कितनी 'आगे बढेंगी' कहना अभी तो मुश्किल है, परंतु, यदि कुछ अत्यंत निर्धन परिवरों की पहचान करके ये सौ करोड उनमे बांटे जाते तो वे परिवार निश्चित्त ही आगे बढ जाते.शायद कांशीराम जी की आत्मा को भी ज्यादा शांति प्राप्त होती.

Sunday, October 7, 2007

क्या चिट्ठाकारी डायरी लेखन है ?

पिछले रविवार को हिन्द युग्म के शैलेश भाई से भेंट हुई. वे हिन्द युग्म की पुरस्कार योजना में पुरस्कृत कवियों को देने के लिये मेरे कविता संग्रह की प्रतियां लेने आये थे. ( यूं मज़ाक में इसे चिट्ठाकर मिलन भी कह सकते हैं). बात चीत हिन्द युग्म के प्रयासों को लेकर शुरू हुई. शैलेश भाई ने आगे की कुछ योजनाओं की भी बात की. मेरी राय में शैलेश में गज़ब का उत्साह भी है और अद्भुत जीवट भी. मेरा मानना है कि यदि इस तरह के प्रतिबद्ध लोग हिन्दी को मिलते रहें तो न केवल भाषा का बल्कि, अंतर्जाल पर भी हिन्दी का भविष्य उज्ज्वल है.

बातचीत के क्रम मे हिन्दी चिट्ठाकारों के बीच समय समय पर उठते विवादों , aggregators की भूमिका, नये एग्ग्रीगटर्स पर भी चर्चा हुई. विवादों पर मेरी राय थी कि इसमें दोनों ही पक्ष दोषी हैं . मैने शैलेश को बताया कि मेरी राय में चिट्ठाकारी कुछ कुछ डायरी लेखन की तरह ही है. बस फर्क़ ये है कि डायरी हम आम तौर पर दूसरों को दिखाने के लिये नही लिखते. ( क्या वाकई ?- यदि ऐसा होता तो डायरी लेखन में भी प्रतिष्ठित व्यक्ति झूठ की मिलावट नहीं करते. हालांकि यह अलग विवाद का विषय है). जब कि blogging is like leaving your personal diary for public exposure. जिस तरह डायरी में हम अपने निजी विचार व्यक्त करते है ,बिना किसी प्रतिबन्ध के, उसी प्रकार ब्लौग पर भी हम अप्ने विचार सार्वजनिक रूप से व्यक्त करते हैं.डायरी और चिट्ठे में पहला अंतर तो यह है कि यदि हम पाखंड का सहारा न लेकर ईमानदारी से अपनी मन की सोच को ब्लोग पर व्यक्त करते है, तो यह लगभग डायरी लेखन ही हुआ. दूसरा अंतर तात्कालिकता को लेकर है. डायरी लिखने के तुरंत बाद सार्वजनिक नही होती ( या की जाती), जबकि ब्लौग पर हम जो भी लिखते है, चाहते भी हैं कि यह तुरंत लोगों की नज़र में भी आ जाये ( यहीं पर एग्ग्रेगेटर्स् की भूमिका है) ऐसे ब्लौग्गर कम ही होंगे जो ब्लौग पर अपनी पोस्ट सिर्फ स्वांत: सुखाय ही लिखते हैं. ( शायद ऐसे ही ब्लौग्गर को किसी एग्ग्रीगटर पर पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती होगी).

शैलेश भाई को में अपनी बात समझा रहा था कि किसी ब्लौग्गर को किसी अन्य ब्लौग्गर की पोस्ट पर undully harsh टिप्पणी करने से बचना चाहिये. प्रतिक्रिया देना एक बात है, टांग खिंचाई ( व्यंग की भाषा मे, भी ठीक समझी जा सकती है), परंतु, अनावश्यक विवाद से बचना ही श्रेयस्कर है. कम से कम में तो ये ही मानता हूं.

मैं यह कदापि नहीं कह रहा कि हमें ब्लौग सिर्फ पढना चाहिये और टिप्पण से बचना चाहिये. ( नही, बल्कि मै तो यहां सारथी जी से पूर्ण सहमत हूं कि अधिक से अधिक टिप्पणी देना भी ब्लोग्गिंग मुख्य उद्देश्य है.) अनावश्यक , सिर्फ विवाद पैदा करने की दृष्टि से की गयी वे टिप्पणियां जिनमें भाषा की मर्यादा रेखा भी लांघ दी जाती है, को में अनुचित मानता हूं.
हालांकि शैलेश भारतवासी के साथ हुई बातचीत में कुछ विशॆष विवादों तथा चिट्ठों का जिक्र भी आया था, परंतु वह यहां जान बूझकर नहीं दिया गया.

मैं बहुत अनुभवी चिट्ठाकर तो हूं नही, अत: बेहतर हो यदि कुछ अनुभवी व जानकार चिट्ठाकर इस पर प्रकाश डालें.

कम से कम में तो इसे अंन्यथा नहीं लूंगा.